मेरे विचार से किसी गीत के अच्छा होने के लिए अच्छी कविता के साथ अच्छे गायन का संगम होना आवश्यक है। मुझे संगीत की समझ बस इतनी है कि जो मेरे मन को अच्छा लगे वाही अच्छा संगीत है। इस लिए अच्छे संगीत की पहचान मैं कान से करता हूँ दिमाग से नहीं। संभवत आनंद का सृजन ही हर कला का मूल उद्देश्य भी है।ठुमरी सुनाने का अपना एक अलग आनंद है। लीजिए निर्मला देवी की आवाज़ के यह खुबसूरत ठुमरी आप भी सुनिए -
4 comments:
जबरदस्त!! आभार सुनवाने का.
निर्मला जी के स्वर में यह गीत सुनकर बहुत आनंद आया. इस गीत ने एक काम और किया, इसने मुझे आज से बीस-पच्चीस साल पहले के अपने गांव में पहुंचा दिया जब फ़गुआ बीतने पर चैता गायन की शुरुआत होती थी.
बहुत बढ़िया प्रस्तुति.आपके खजाने में बहुत रत्न हैं.ऐसे ही झलक दिखलाते रहें!
बहुत बढ़िया......आभार
निर्मला जी की यह चैती बहुत पहले सुनी थी ,आज वही भूले बिसरे दिन याद हो आए !आभार !
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