फ़िक्र मोमिन की, ज़ुबां दाग की, गालिब का बयाँ, मीर का रंगेसुखन हो तो ग़ज़ल होती है। सिर्फ़ अल्फाज़ ही मानी नहीं करते पैदा, ज़ज्बा-ऐ-खिदमत-ए-फ़न हो तो ग़ज़ल होती है।
Sunday, September 28, 2008
अभी अलविदा मत कहो दोस्तों ...
आज लता जी का अस्सीवाँ जन्म दिन है। सुरों की इस साम्राज्ञी की उम्र हजारों साल हो ऐ दुआ कर ही रहे थे की ख़बर पढ़ी की आवाज़ की दुनिया का एक और सितारा अस्त हो गया। पार्श्वगायन के स्वर्णयुग के एक प्रतिनिधि थे महेंद्र कपूर भी। जिस युग में मुहम्मद रफी साहब, किशोर दा और मुकेश जी जैसे दिग्गज थे , महेंद्र कपूर जी ने अपने लिए अलग जगह बनायी। मेरे देश की धरती सोना उगले, चलो एक बार फ़िर से , न सर झुका के जियो, किसी पत्थर की मूरत इत्यादि गाने और गुमराह , हमराज़, काजल, धूल का फूल, निकाह आदि फिल्में हमेशा महेंद्र कपूर जी के गायन के लिए याद की जायेगी। ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे। उनको श्रद्धांजलि स्वरूप पेश है उनका गाया निकाह फ़िल्म का यह गीत जो संभवत कुछ सबसे अच्छे विदा गीतों में से है----
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
श्रद्धांजलि !
इन फ़नकारों को कोई क्या अलविदा कहेगा ......
महेन्द्र कपूर ज़िन्दाबाद! आप भी ज़िन्दाबाद!
श्रद्धांजलि !
मुलाकात तो होती रहेगी साहब
आवाज ही पहचान है
नमन
Post a Comment