Saturday, September 27, 2008

उड़ जाएगा हंस अकेला...

जब एक दिन
सब कुछ रुक जाएगा
रुक जाएगा साँसों का तूफ़ान
रुक जाएगी धड़कन सीने की
जिस्म की हरारत
ठंडी पड़ जाएगी ।
जब वक्त की हथेली
तुम्हे ले लेगी
अपनी मजबूत गिरफ्त में।
तब जब मिट जाएगा
हर चिन्ह ।
और तुम डाल से टूटे
पत्ते की मानिंद
फ़िर न मिल पाओगे
कभी अपने अपनों से।
तब तुम्हारे साथ होगी बस
तुम्हारे अच्छे बुरे कामो की
फेरहिस्त ।
जो बोया होगा तुमने
काटोगे भी वही

जीवन नश्वर है इस सत्य का बोध जिस को हो जाता है वह कबीर हो जाता है, बुद्ध हो जाता हैकबीर और कुमार गन्धर्व एक मणिकांचन सयोग है। लीजिए कबीर का यह भजन सुनिए कुमार गन्धर्व जी की आवाज़ में...





3 comments:

शायदा said...

very nice. beautiful words...adbhut vani.

siddheshwar singh said...

प्यारे भाई,
कुमार गंधर्व के जोगिया स्वर में इस कबीर साहब की इस रचना को बार-बार सुनना विराग की आग को कुरेदने वाला होता है किन्तु माया महाठगिनी हर बार अपने पाश में बांध लेती है. यही तो जीवन का सार है, सौंदर्य भी और विडम्बना भी : याद करें-'हमको मालूम है जन्नत की हकीकत...'

कबीर साहब ही तो कहते है-

'जेहि सिर रचि-रचि बांधहिं पागा
तेहि सिर चंचु संवारहिं कागा..'

और कबीर ही तो यह भी कहते है-
'हमन हैं इश्क मस्ताना हमन को होशियारी क्या..'

रोज यही दुआ करता हूं कि मौला होशियारी से बचाए रखियो!
संगीत की संक्रात्मकता दिलों के तार जोड़ती रहे. यही कामना है.
सादर-
सिद्धेश्वर सिंह

Ashok Pande said...

आनन्द हुआ.

एक सर्वकालीन सर्वप्रिय रचना सुनाने का धन्यवाद. इस अवधूत गायक की स्मृति एक बहुत बड़ा स्रोत है जीते जाने को सतत प्रेरित करता हुआ.

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