Wednesday, September 17, 2008

राम करें कही नैना न उलझें

राम चरित मानस में तुलसीदास जी ने एक प्रसंग का बहुत सुंदर वर्णन किया है - पुष्प-वाटिका में राम सीता को और सीता राम को देखते हैं और दोनों एक दूसरे को अपलक देखते रह जाते है-
'भए विलोचन चारु अचंचल,
मनहु सकुचि निमी तजे दिगंचल
दोनों के सुंदर नयन स्थिर हो गए हैं। मानो इस प्रेम सिक्त युगल को देख संकोच वश निमी (राजा जनक के एक पूर्वज जो कथानुसार पलकों पर बसते है और इसी कारण पलकें झपकती है. पलकों के झपकने के बीच के समय को निमिष कहते हैं) पलकों पर से हट गए हैं। नैनों का प्रेम की दुनिया में विशेष स्थान है। तभी तो फकीर कहता है -
'कागा सब तन खाइयों चुन चुन खइयो मांस ,
दो नैना मत खाइयो इन्हें पिया दरश की आश
लीजिए नैनों की यही कहानी इकबाल बानो की आवाज़ में आप भी सुनिए-


MusicPlaylist

2 comments:

Abhivyakti said...

bahut sundre likha aur smjhaya hai
aap ne .

is sunder rchna ke liye badhaai !

seema gupta said...

"wah very beautifully described, and enjoyed listning"

Regards

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