बनारस में प्रचलित लोकगीत विधाएं जैसे ठुमरी, कजरी, होरी, चैती और पूर्वी इत्यादि अक्सर शास्त्रीय और उपशास्त्रीय बंदिशों में सुनने को मिल जाती है पर आज ब्रज का लोकगीत 'रसिया' पंडित जसराज जी की आवाज़ में सुनिए। ब्रज जहाँ राधा और कृष्ण का अमर प्रेम जन-जन के, लोक के मन में गहरे तक बसा है। उसी प्रेम रस से सराबोर यह रचना जो मुझे बहुत पसंद है। आप को भी उम्मीद है पसंद आएगी-
4 comments:
क्या ग़ज़ब समां बांधा है साहब आपने. तबीयत ख़ुश हो गई आपके ब्लॉग पर आ कर. आपको मेरे दोनों ब्लॉग पसन्द यह जानना भी सुखद है. दो घन्टों से सारा कुछ सुन लिया आपके यहां. अब आना जाना लगा रहेगा.
बने रहें जनाब! आदाब!
वाह!! आनन्द आ गया पंडित जसराज को सुन कर!! बहुत आभार.
भाई,
आज की यह सुबह रसिया के रस से भीग रही है.आनंद, आप पसंद बहुत ऊचे दरजे की है. मेरे संग्रह में इसे होना चाहिये अब आप ही सोचिये,कैसे मिलेगा. मेल कर दे तो क्या कहने.
और हां,'कर्मनाशा' का लिंक देखकर खुशी हुई.आभार.
पंडित जसराज जी का स्वर और बृज के रसिया का माधुर्य , मैं तो धन्य हो गया और इस धन्यता के लिए आपका आभार सिंह साहब !बहुत अच्छी पसंद है आपकी ,सुन सुन कर प्यास और बढती ही जाती है !पुनः आभार !
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