Sunday, September 14, 2008

तेरे इश्क ने नचाया

'वाइज़ के टोकने से मैं क्यों रक्श रोक दूँ , उनका हुक्म है के अभी नाचते रहो

संगीत और कविता मन को उस असीम से जोड़ने का सदैव ही माध्यम रहे हैं। उसके इश्क का सम्मोहन जब मन और आत्मा की गहराइयों तक उतरता है तब पाँव ख़ुद-ब-ख़ुद थिरकने लगते है । जब उसका प्रेम नचाता है तो फकीर बुल्लेशाह भी नाचते है और मीरा भी। सूफी संगीत सदा ही मन को राहत और शान्ति देता है। वडाली बंधुओं का गायन हमें इसी भाव-भूमि में ले जाता है इस अशांति के दौर में बाबा बुल्ले शाह की यह रचना पटियाला घराने के सुप्रसिद्ध गायक वडाली बंधुओं पद्मश्री पूरण चन्द वडाली और प्यारे लाल वडाली की आवाज़ में आप भी सुनिए-


MusicPlaylist

2 comments:

ललितमोहन त्रिवेदी said...

तेरे इश्क ने नचाया ...ने तो मन को नचा ही डाला ! आपकी सभी प्रस्तुतियां सुंदर हैं सिंह साहब और निश्चय ही आप बधाई के पात्र हैं इसके लिए ! निरंतरता बनाये रखें !

siddheshwar singh said...

वडाली बंधु को सुनवा कर तो आपने सचमुच धमाल कर दिया और मुझ अकिंचन को निहाल.बल्ले-बल्ले! इसी गीत को आबिदा परवेन भी क्या खूब गाया है किन्तु यह तो बहुत ही जान्दार है.

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