एक संगीतकार जिसकी याद आते ही मन में जलतरंग सी बज उठे। जीहाँ मैं जयदेव की बात कर रहा हूँ। वह संगीतकार जिसकी धुनों में भारतीय संगीत अपने पूर्ण सौन्दर्य के साथ बिखरा पडा है। चाहे शास्त्रीय धुनें हों चाहे लोकसंगीत या फ़िर ग़ज़ल हो जयदेव हर जगह अप्रतिम हैं। संगीत का यही जादू था जिसके लिए जयदेव को तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया-रेशमा और शेरा (१९७२), गमन (१९७९) और अनकही (१९८५) हिन्दी फिल्मों के लिए यह एक रिकार्ड है। यह देखते हुए की जयदेव का युग सलिल चौधरी, मदन मोहन, शंकर जयकिशन तथा आर डी बर्मन जैसे दिग्गजों का युग था, इन पुरस्कारों का महत्त्व और बढ जाता है। अल्प-स्मृति के इस युग में जब हम महान कहे जाने वाले संगीतकारों के गाने भी हम ६ महीने से ज्यादा याद नहीं रख पाते, संगीत के इस प्रतिमान को सुनना यादों की सुरीली गलियों से गुजरने का सा अनुभव है। आइये सुनते है जयदेव की अलग अलग रंगों वाली तीन संगीत रचनाएँ-----
6 comments:
सिंह साहब आपने तो मजा बांध दिया। लगता है वसंत गा रहा है।
द्विवेदी जी सही कह रहे हैं। मज़ा आ गया!
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चाँद, बादल और शाम
दिल जीत लिया आपने।
bahut sundar dono mere pasandida geet.
भाई वाह हम तो कब से ढूंढ रहे थे इस गाने को.......
क्या बात है जनाब!
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