१९६३ में बनी फ़िल्म 'ताज महल' के संगीत का जिक्र हो तो 'जो वादा किया वो निभाना पडेगा' और 'जो बात तुझमें है तेरी तस्वीर में नहीं' जैसे सर्वकालिक श्रेष्ठ गानों की याद आए बिना नहीं रह सकती। आइये आज इसी फ़िल्म का एक कम प्रसिद्ध गीत लता जी की आवाज़ में सुनते हैं और साहिर की काविता का एक और नायाब नमूना देखते है।
हर एक फतहों-ज़फर के दामन पे खूने-इन्शां का रंग क्यूं है
जमीं भी तेरी हैं हम भी हैं तेरे, ऐ मिलकियत का सवाल क्या है
ये कत्लो-खूँ का रिवाज़ क्यूं है ये रश्म ज़ंगो -ज़दाल क्या है
जिन्हें तलब है जहान भर की उन्हीं का दिल इतना तंग क्यूं है
गरीब माँओं, शरीफ बहनों को अम्नों-इज्ज़त की जिंदगी दे
जिन्हें अता की है तूने ताक़त उन्हें हिदायत की रौशनी दे
सरों पे किब्रो-गुरूर क्यों है दिलों के शीशों पे ज़ंग क्यूं है।
कज़ा के रस्ते पे जाने वालों को बच के आने की राह देना
दिलों के गुलशन उजड़ न जाएँ, मुहब्बतों को पनाह देना
जहाँ में जश्नेवफ़ा के बदले ये जश्ने तीरो-तुफ़ंग क्यूं है।
खुदा-ऐ-बरतर तेरी जमीं पर जमीं की खातिर ये जंग क्यूं है
हर एक फतहों-ज़फर के दामन पे खूने इन्शां का रंग क्यूं है
4 comments:
hi wonderful song..thanks for the same..
i was searching for the Hindi typing tool and found 'quillapd'.do u use the same...?
जिन्हें तलब है जहान भर की उन्हीं का दिल इतना तंग क्यूं है..zamaney baad suna ye geet..
hmmmye geet bahut meetha....bahut samvedanshil lagta hai
साहिर की रचना ,लताजी का स्वर और आपका चयन तीनों ही अद्भुत ! दिल को हिला देने वाला गीत !
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