आइये आज देशी रस में डूबते है। शहरों ने हमसे जो कुछ छीना है उन्हीं में हमारे लोकगीत भी है। कजरी, फाग, चैती, बिरहा, सोहर, ब्याह, बन्ना, विदाई हर अबसर हर मौसम के कुछलोकगीत कुछ लोकगीत सराबोर अपने पीछे एक समृद्ध परम्परा लिए। हमारे सुख दुःख से जुड़े गीत। माटी की महक लिए हर अवसर पर मन की गहराईयों से फूट पड़ने को आतुर। पर रोजगार के गम सब पर भारी पड़ गए। पर मन का क्या करे आज भी भटक भटक जाता है-किसी झूले पर, किसी बिरहा के दंगल में, नौटंकी में ...पहले तो कभी कभी आकाशवाणी के किसी स्टेशन से सुनाई भी पड़ जाते थे अब ऍफ़ एम् की कृपा से वह सब भी समाप्त हो गया। और लोकगीत के नाम पर जो कुछ सुनाई भी पङता है उससे तो न सुनना ही अच्छा। कम से कम कानो में अब तक जो रस घुला हुआ है वह तो बना रहे। खैर छोडिये .... आइये सुनते हैं पद्मश्री शारदा सिन्हा जी की गायी यह कज़री- बदरिया घिरी आइल ननदी....
अब सुनिए फैज़ल की आवाज़ में सूरीनाम का यह भोजपुरी गीत- टप टप चुवेला पसीना सजन बिना ......
और अब फ़िल्म 'गंगा मईया तोहें पियरी चढ़ाइबो ' का शैलेन्द्र का लिखा गीत- काहे बसुरिया बजवले....
(चित्र इंटरनेट से साभार)
अब सुनिए फैज़ल की आवाज़ में सूरीनाम का यह भोजपुरी गीत- टप टप चुवेला पसीना सजन बिना ......
(चित्र इंटरनेट से साभार)
4 comments:
KOTISHAH AABHAAR...
अच्छे लगे ये तीन अलग-अलग रंग!!
बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई... साधुवाद... सिंह साहब, समय निकाल कर पोस्ट में आडियो लगाने का तरीका मुझे भी समझांए..
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ymoudgil@gmail.com
पहला गीत तो हमारी गुड लिस्ट में बहुत दिन से है. तीसरा गीत पहली बार सुना और बहुत अच्छा लगा...!
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