फ़िक्र मोमिन की, ज़ुबां दाग की, गालिब का बयाँ, मीर का रंगेसुखन हो तो ग़ज़ल होती है।
सिर्फ़ अल्फाज़ ही मानी नहीं करते पैदा, ज़ज्बा-ऐ-खिदमत-ए-फ़न हो तो ग़ज़ल होती है।
Monday, December 15, 2008
सौदा हो तो ऐसा हो....
इब्ने-इंशा (१९२७-१९७८) कीग़ज़ल 'कलचौदहवींकीरातथी ' नजानेकबसेजगजीतसिंहऔरगुलामअलीकीआवाजोंमेंसुनतेआरहेंहैं. उनकी 'उर्दूकीआखिरीकिताब' नेकभीजिया-उल-हकसाहबकोनाराज़करदियाथाअपनेमारकव्यंगसे।उसकिताब की भूमिकामेंलिखाउनकाएकवाक्यअबभीजेहनमेंकौंधजाताहै- 'यहकिताबकेवलबालिगोंकेलिएहै, जेहनीतौरपरबालिगोंकेलिए'।वहकिताबतोमेरेकिसीसाहित्यरसिकदोस्तनेपारकरदीनहींतोआजदो-चारव्यंगआपकीनज़रकरता पर आइएआजसुनतेहैंइब्नेइंशाकाकलामआबिदाजीकीशानदारआवाजमें।आबिदाजीगायनकेबारेमेंकुछकहनेकीजरूरतनहींहैबससुनिएऔरआनंदलीजिये-
दिल इश्क में बे-पायां, सौदा हो तो ऐसा हो। दरिया हो तो ऐसा हो, सहरा हो तो ऐसा हो।
हमसे नहीं रिश्ता भी, हमसे नहीं मिलता भी, है पास वो बैठा भी, धोखा हो तो ऐसा हो।
वो भी रहा बेगाना, हमने भी ना पहचाना, हाँ ऐ दिले दीवाना, अपना हो तो ऐसा हो।
हमने यही माँगा था, उसने यही बख्शा है, बन्दा हो तो ऐसा हो, डाटा हो तो ऐसा हो।
इस दौर में क्या क्या है, रुसवाई भी लज्जत भी, कांटा हो तो ऐसा हो, चुभता हो तो ऐसा हो।
ऐ क़ैस जुनूँ-पेशा, इंशा को कभी देखा, वहशी हो तो ऐसा हो, रुसवा हो तो ऐसा हो।
6 comments:
शानदार गज़ल !
जानदार आवाज़ !!
दरिया हो तो ऐसा हो, सहरा हो तो ऐसा हो ...
... क्या सुनवा दिया बड़े भाई!
NARAYAN NARAYAN
* सुना , आनंद आया.
** 'उर्दू की आखिरी किताब' की आपने खूब याद दिलाई. यह मेरे पास है. चलिए 'कर्मनाशा' / 'कबाड़खाना'पर कुछ इसी में से लगाता हूँ.
हमसे नहीं रिश्ता भी, हमसे नहीं मिलता भी,
है पास वो बैठा भी, धोखा हो तो ऐसा हो।
वो भी रहा बेगाना, हमने भी ना पहचाना,
हाँ ऐ दिले दीवाना, अपना हो तो ऐसा हो।
waah ..pahali baar suna..! bahut khoob
बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आपका आभार
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