कुछ दिन पहले सिद्धेश्वर भाई ने अमीर खुसरो के बारे में ठीक ही लिखा था कि ''हिन्दवी' से 'हिन्दी' की यात्रा में इस महान साहित्यकार को हिन्दी की पढ़ने -लिखने वाली बिरादरी ने उतना मान - ध्यान नहीं दिया जितना कि संगीतकारों ने।" तो फ़िर आज इन्ही संगीतकारों की ओर से इस महान साहित्यकार और संगीतकार की दो रचनाएँ मैं आप को सुनवाता हूँ। लेकिन चलिए पहले अमीर खुसरो के कुछ दोहे फ़िर से पढ़े जाय -
खुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वा की धार ,
जो उबरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।
खुसरो बाज़ी प्रेम की, मैं खेलूँ पी के संग,
जीत गई तो पीया मेरे, हारी पी के संग।
खुसरो रैन सुहाग की, मैं जागी पी के संग,
तन मोरा मन पीया का दोनों एक ही रंग।
भाई रे मल्लाह जो हमको पार उतार,
हाथ का देवूँगी कंगना, गले का देवन हार।
अपनी छब बनाई के मैं पी के पास गई
जो छब देखि पीहू की मैं अपनी भूल गई।
गोरी सोवे सेज पर मुख पर डारे केश
चल खुसरो घर आपने रैन भई चहुँ देश।
पहले उस्ताद नुसरत फतह अली खान की आवाज़ में - 'रंग'
अब पेश है उस्ताद राशिद खान की आवाज़ में - 'नैना अपने पिया से लगा आई रे....'
हाँ आमिर खुसरो पर बहुत सारी सामग्री इस वेब साईट पर उपलब्ध है- कभी जाइए-
http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/amirmusc.htm
4 comments:
खुसरो बाज़ी प्रेम की, मैं खेलूँ पी के संग,
जीत गई तो पीया मेरे, हारी पी के संग।...kya baat hai..baar baar padhney jaisaa!
dono hi kalaam..behtareen!
गोरी सोवे सेज पर मुख पर डारे केश
चल खुसरो घर आपने रैन भई चहुँ देश।
वाह !यूँ तो तमाम दोहे लाजवाब लगे पर इसकी तो बात ही क्या !
सिंह साहब तबियत मस्त कर दी आपने.ख़ुसरो का जादू सर चढ़ कर या कहूँ दिल में उतरकर बोलता है और माश्शाअल्लाह ! क्या गायकी है.....
जादू !
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