पिछले दिनों देश में जो कुछ हुआ और उस पर हमारे राजनैतिक प्रतिष्ठान की जो प्रतिक्रया रही उससे हम सब का मन खिन्न है। जीवन तो चलता ही है पर कुछ न कुछ बदल जरूर जाता है। फ़िर बहारें आएँगी उजडे चमन की शाख पर, पर खून के धब्बे धुलेंगें कितनी बरसातों के बाद..... दुआ करें कि ऐसा फ़िर कभी न हो, कहीं न हो। सिद्धेश्वर जी का आदेश है की कुछ ऐसा सुनवाया जाय जिससे खिन्नता मिटे । आदेश का पालन तो करना ही है । पेश है एक बार फ़िर वडाली बंधु बाबा बुल्ले शाह के कलाम के साथ। 'कदी आ मिल यार .......' वडाली बंधु इस गीत में अपने गायन से हमें एक दूसरी ही दुनिया में ले जाते हैं। लीजिये आप भी अनुभव कीजिये-
4 comments:
आभार मित्र!
"सिर्फ़ अल्फाज़ ही मानी नहीं पैदा करते"
मेरे ख्याल से यह "सिर्फ़ अल्फाज़ ही मानी नहीं करते पैदा" है. अगर मैं ग़लत हूँ तो सुधारें|
आपकी बात ठीक शेखर भाई पर सिर्फ़ अल्फाज़ ही..............
ब्लॉग पर आने का शुक्रिया.... आते रहें
बेहद सुन्दर पोस्ट लगाई सिंह साब! बहुत शुक्रिया.
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