Tuesday, July 21, 2009

मेरे किस्से मेरे यारों को सुनाता क्या है....


आइये आज हैं गु़लाम अली साहब को। अस्सी के दशक में जब गज़लें सुनने (और सुनाने का भी) जूनून सा था तब जिन गायकों को सुन एक मदहोशी की सी स्थिति रहती थी उन में एक नाम गुलाम अली का भी है। उस्ताद मेहंदी हसन, जगजीत सिंह और गु़लाम अली इन तीन गायकों की ग़ज़लों का खुमार अभी तक उतरा नहीं हैहमारे बनने और बिगड़ने में ये उस्ताद लोग बराबर के शरीक रहे हैं । उस जमाने में 'निकाह' फ़िल्म में बजाई गई हसरत मोहानी साहब की ग़ज़ल चुपके-चुपके का तो खैर कहना ही क्या। 'हंगामा है क्यों बरपा ', 'दिल में एक लहर सी उठी है अभी', 'अपनी धुन में रहता हूँ' और कितनी मुद्दत बाद मिले हो' हमेशा मेरी सबसे पसंदीदा ग़ज़लों में हैं। वैसे तो यह लिस्ट बहुत लम्बी है। मुझे पंजाबी ज्यादा समझ नहीं आती पर गुलाम अली के गाये कुछ पंजाबी गीत भी मुझे बहुत पसंद हैं जैसे 'नि चम्बे दिए बंद कलिए...। आज सुनते है इस गायक की सदाबहार गायकी के दो श्रेष्ठ उदाहरण-

कहते है मुझसे...


बेशक जाणा....


7 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत आभार. घर जाकर सुनेंगे.

Ashok Pande said...

दूर से देख के अब हाथ हिलाता क्या है ...

कितने बरस पीछे खेंच ले गए गरदन पे डोर बांध के आप जनाब!

उफ़!

सुशीला पुरी said...

aabhar...............jarur sunenge

अमिताभ मीत said...

ग़ज़ब ग़ज़ब !! मस्त हो गया हूँ !!!

ज्योति सिंह said...

aaj afsos ke saath khushi bhi hai .afsos is baat ka ye jagah ab tak kyo nazaro me nahi aaya .gazal to meri zindagi hai ,rooh ko rahat dene wale blog par aakar behad prashanta hui .jise raat din sunate uski charcha behad dilchshp hai ye mukaam .gulaam ali ji ki ek geet kahate huye chalti ----musafir chalte-chalte thak gaya hai ,
safar na jaane ab aur kitna pada hai ......bahut sundar ,shukriya tahe dil se karate hai aapka .isi laalch me aate rahange .

Dankiya said...

mazi yaad aa gaya..dhanywad..shukriya!!!

Dankiya said...
This comment has been removed by the author.

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