Saturday, March 7, 2009

मोरा फागुन में जियरा बहके.....


अब आप कहोगे कि भाई फागुन में तो सब का मन बहका रहता है इसमें नई बात क्या है। नई नहीं है तो क्या बात नहीं करने देंगे। अरे भईया विजया बूटी के संग ठंढई का एक लोटा जमाओ तब समझ में आयेगा बहकने और बहकने का फर्क। अब मैं यह पोस्ट तो इस बहक में नहीं लिख रहा हूँ यह आप जानो। कहते हैं कि पुरानी दारू का नशा ज्यादा होता है। पता नहीं कौन सी दारू का उसका जो बोतल में पड़ी रहती है या उसका जो इतने सालों से खून में मिले मिले पुरानी हो रही है। इस बारे में कबाड़ी अशोक भाई कुछ बताएं या फ़िर कभी कभी आने वाले मयखाने वाले मुनीश भाई। सिद्धेश्वर भाई तो पहले से ही अलसाए हुए हैं। मित्र अनिल यादव जरूर राजनीति और माफिया के प्रेम प्रसंग को देख कुछ नाराज लग रहे हैं। भाई आज एक गोला लो शिव भोले के नाम सब ठीक हो जायेगा। एक दिन एसा आयेगा जब न ये माफिया रहेंगे और न उनके राजनैतिक आका। बस हम आप रहेंगे और हमारा देश रहेगा। ..... कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी... । हाँ गाना सुनके टिपिया जरूर देना।

अरे मैं भी कहाँ बहक गया। खैर अब अनुनाद वाले शिरीष भाई जैसा गंभीर तो नहीं ही हूँ। अब यार कोई होली कि कविता लिखो तो पढें भी। आज कल वैस भी दफ्तर में गंभीरता का अड्डा बना हुआ है। लेकिन होली की कविता लिखोगे भी तो यहाँ छापोगे कैसे गुरु। मीत भाई की तरह वफ़ा कर के रुसवा हो जाओगे । हराकोना वाले रविन्द्र व्यास जी तो हर मौसम में रंगों से ही खेलते रहते हैं पता नहीं कभी भंग मिलाई है रंगों में अथवा नहीं वैसे पता नहीं रंग में भंग वाला मुहावरा कैसे बन गया और रंगों में और शुरूर आने की बजाय मामला उलटा हो जाता है इस बारे में शब्दों का सफर वाले शब्दशास्त्री अजीत वडनेकर शायद कुछ प्रकाश दाल सकें- बिना भंग पिए.....

सुना कांग्रेसियों ने स्लमडाग करोड़पति को आस्कर मिलने का श्रेय ख़ुद को दिया है। धन्य हो भईया आपलोग । आप ही की किरपा से तो शहर शहर स्लम उग रहा है। आगे और आस्कर मिलेंगे। (जैसे मल्तीनेशनल्स के आने के साथ एक दम से अपने देश में विश्व-सुंदरियां पैदा होने लगीं थी वैसे ही वार्नर ब्रदर्स और सोनी मोशन पिक्चर्स के आने के साथ आस्कर भी आयेंगे। भाई बात धंधे की है।) और सुना 'जय हो' गाना भी खरीद लिया। अरे आडवानी बाऊ जी कहाँ सो रहें हो, आप भी कुछ ले आओ भारत उदय जैसा। गुरु जो लोगों खुबई तमाशा कर रहें हो। चलो जनता भी ऐसी होली खेलेगी कि चकराते रह जाओगे।राजनीति की बात चली तो लालू जी याद गए यारों रेलवे का जो विकास हुआ है वह तो किसी भी स्टेशन पर देखा जा सकता है असली असर तो अमेरिका पर हुआ भईया ने हावर्ड वालों को शिक्षा क्या दी बन्दों ने अमेरिका को भी लालू जी के समय वाला बिहार बना डाला साधुवाद.... साधुवाद अरे भाई साधुवाद कह रहा हूँ साधूवाद नहीं

अमां भाई लोगों यह होली भी गज़ब चीज है। दारू से दल दल तक पहुँच गया। अरे मतलब दल से है - कांग्रेस, भाजपा, बसपा, सपा जैसे दल। यह सब लगता है शिव जी के प्रसाद का कमाल है। अब आप माने न माने मुझे तो शिव जी सबसे बड़े समाजवादी लगते हैं। यहाँ कोई बड़ा छोटा, उंच नीच नही।भूत - प्रेत, वैताल सब बराबर , बिल्कुल हमारी संसद जैसे। बस सोमनाथ दा कभी कभी इस समाजवाद की खटिया उलटते रहते हैं। क्या करोगे सठिया गए हैं।

अब सठियाने का क्या करेंगे। हमारे गावं में एक बुजुर्ग थे - होली में खूब फाग गाते- फागुन में बब्बा देवर लागें... फागुन में पर हाय री किस्मत कभी किसी भाभी की नज़ारे इनायत नहीं हुई। वैस होली में जितना आनंद होली खेलने का होता था होली जलाने का उससे कुछ कम नहीं था। 'था' इस लिए की बहुत दिनों से न होली बढ़ाई है और न जलाई । बस जा कर आग तापने जैसा कुछ कर आते है। बहुत दिनों से मार्च के कारण गावं जो ज़ाना नहीं हो पाया। और वहाँ भी सुना है सामाजिक समरसता ने अपना पूरा रंग दिखाया है तीन जगह होली जलने लगी है और लोग अब होली खेलने किसी और के घर ज़ाना अपनी तौहीन समझते हैं। सब भोले की माया है।

होली आई है तो मुझे अपने एक वरिष्ठ मित्र की याद हो आई। एक बार होली के बाद गावं से लौटते हुए होली गीतों का एक कैसेट लेता आया था। भाई साहब को वह कैसेट भा गया। कैसेट को उसका सही कद्रदान मिल गया था। उन्होंने उस कैसेट का एक गीत न जाने कितनी बार सुना और न जाने कितने मित्रों को सुनवाया होगा-- भौजी क मरकहवा कज़रवा सब के दीवाना बनवले बा..... आज भाई आर के सिंह साहब हमारे बीच नहीं है बस उनकी याद हमें हर होली में भिगो जाती है।

अब मौसमों का क्या आते जाते रहेंगे। बस मन से रंग और बूटी का सुरूर न उतरेयही दुआ है । आपकी हर शाम दिवाली और हर सुबह होली हो मयखाने में आपका एक फ्री वाला खाता खुल जाए ( फ़िर प्रमोद मुतालिक से भी निपट लेंगे- लगता है बन्दे को कभी मयस्सर नहीं हुई।). कहा सुना माफ़-- बुरा न मानो होली है।सभी दोस्तों को सपरिवार होली की हार्दिक बधाई।

आइये अब कुछ गाना बजाना हो जाय...







9 comments:

ललितमोहन त्रिवेदी said...
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ललितमोहन त्रिवेदी said...

पूरे दिन से परंपरागत होली सुनने को तरसता रहा ,अभी आपका ब्लॉग खोला !आपने तो सराबोर ही कर दिया सिंह साहब !क्या कहने हैं " मओर फागुन में जियरा बहके लला " !सचमुच बहका दिया अपने तो !

Himanshu Pandey said...

सुन्दर गीतों के लिये धन्यवाद ।

siddheshwar singh said...

भाई आपने तो पूरा दिल खोलकर फ़ागुन के बहाने धर दिया.आपकी मोहब्बत सर माथे .आलस्य त्यागने की कोशिश जारी है.
बहुत ही अच्छे गीत .
अपना तो फगुआ रंगा गया.
सारा रारा

Anonymous said...

होली की हार्दिक शुभकामनायें । होली के गीतों को सुनवाने के लिए धन्यवाद।

sanjay patel said...

होली की राम राम दादा.
बहुत दिन भये आपकी गली आए हुए.
आज आया और तबियत तर हो गई.

किरपा बनाए रखियो.

Ek ziddi dhun said...

बढ़िया, ये तो आपका फील्ड है। और ये पेंटिंग किसकी है, ये हरा कोना वाले विशेषज्ञ बताएंगे क्या?

मुनीश ( munish ) said...

nice painting and of course the write-up as well.

शिरीष कुमार मौर्य said...

बड़े भाई मैं गंभीर नहीं हूँ बस दुश्मनों की तबीयत कुछ नासाज़ रही

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