सूफ़ी कविता प्रेम की कविता है और अगर गायक नुसरत जैसा हो तो इस प्रेम कविता को चार चाँद लग जाते है। रूह की जिन गहराइयों को से सूफ़ी कविता निकलती है उन्ही गहराइयों को प्रतिध्वनित करता है बाबा नुसरत का गायन। उनके गायन में एक सम्मोहन सा है और वे ख़ुद भी किसी सम्मोहन में गाते हुए लगते हैं। ऐसी तल्लीनता शायद ही किसी और गायक में मिले। उनके भतीजे और शिष्य राहत नुसरत फतह अली खान , जिन्हें बाबा नुसरत ने १२ साल की उम्र में ही अपनी शागिर्दी में ले लिया था, को भी उनका यह गुन विरासत में मिला है। (यद्यपि आज कल वे कुछ भटक गए से लगते हैं)। आइये आज इन्ही महान गुरु और उसके योग्य शिष्य का गायन सुनते है। पहले बड़े खान साहब की आवाज़ में 'नित खैर मँगा तेरे दम दी....' फ़िर राहत की आवाज़ में ' सानू एक पल चैन न आवे....'
5 comments:
tu ki milya ve mil gayi khudai ve
hath jod akhan pavi na judai ve
mar javangi j akh maitho feri
oye hoye eh ki suna dita babeyo. main te pehla hi ehna da mureed ha. mere computer ch nusrat hi nusrat bharya hoya hai.
rooh raji kar diti tusi te.
.....maza aa gaya ji !!
बहुत खूब इसे कहते हैँ असली गुरु चेले की जोडी -
सिंह साब मेरे पास "नित खैर मंगां ..." का एक अलौलिक वीडियो है. देखिये कभी मौका लगा तो दिखवाता हूं.
बाबा नुसरत की याद दिलाने का शुक्रिया. हां राहत फ़तेह अली को लेकर अभी भी मेरे मन में संशय है - वैसे भी बरगद के नीचे घास पात के अलावा ज़्यादा कुछ उग नहीं पाता. नुसरत जैसा गायक तो सौ साल में बस एक पैदा होता है.
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