Sunday, April 5, 2009

यूँ ही पहलू में बैठे रहो ...



आज बहुत दिनों बाद इधर आना हुआ, इसके लिए सभी दोस्तों से माफ़ी चाहूंगा। वही रोजगार के गम। खैर इस दौरान आप लोगों को पढ़ता-सुनता जरूर रहा हूँ बस कुछ लिखना नहीं हो पाया।

आइये आज सुनते हैं फ़रीदा खानम को। कुछ गज़ले गायक की पहचान बन जाती हैं। ऐसी ही ग़ज़ल है - आज जाने की जिद ना करो... इस ग़ज़ल को फ़रीदा जी ने इस अंदाज़ से गाया है की उनका नाम लेते ही इस गज़ल की याद आती है और इस गज़ल का जिक्र छिड़ते ही फ़रीदा जी की। तो फ़िर आज सुनते हैं इनकी गायी ये ग़ज़ल -




6 comments:

siddheshwar singh said...

बहुत दिनों के बाद आए
आप की याद आती रही लगातार
इस ग़ज़ल के बारे में क्या कहा जाय यदि भीतर कुछ तरलता -सरलता शेष है तो ऐसे ही संगीत -शायरी के कारण.
आनंद -आनंद और क्या !!

Manish Kumar said...

हबीबा वली मोहम्मद और फरीदा जी, आशा जी इन सभी की आवाज़ में सुना है इसे। और हर बार सुनते सुनते इसे गुनगुनाए बिना नहीं रहा जाता।

शिरीष कुमार मौर्य said...

बड़े भाई फ़िलहाल प्लेयर खुल नहीं रहा पर ग़ज़ल कई बार की सुनी हुई है !
सुखद अतीत में ले जाने का शुक्रिया !

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर लगा ।

पारुल "पुखराज" said...

shukriyaa !

कंचन सिंह चौहान said...

bahut pasand hai ye geet mujhe..... sunavaane ka shukriya

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